दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को|| राम प्रसाद बिस्मिल

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दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को (काव्य) हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर हम को भी पाला था माँ-बाप ने दुख सह सह कर।  वक़्त-ए-रुख़्सत उन्हें ...

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